Vice President Poll: क्या इस ट्रंप कार्ड के सहारे किसान आंदोलन का ‘डैमेज कंट्रोल’ और दो राज्यों में विपक्ष को कमजोर कर पाएगी भाजपा?

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पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा ने बड़ा ट्रंप कार्ड खेला है। पार्टी, इसके जरिए किसान आंदोलन में हुए नुकसान की भरपाई यानी ‘डैमेज कंट्रोल’ करना चाहती है। साथ ही इस कार्ड की मदद से दो राज्यों, हरियाणा और राजस्थान में विपक्षी खेमों को कमजोर करना भी एक बड़ा मकसद है। जगदीप धनखड़ जाट परिवार से आते हैं और उन्हें भाजपा ने ‘किसान पुत्र’ की संज्ञा देते हुए उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। राजस्थान में दस फीसदी और हरियाणा के बीस फीसदी जाट वोटरों के भरोसे को जीतने में ‘जगदीप धनखड़’ कितना कामयाब होंगे, आगामी चुनाव में इसका पता लगेगा।
मौजूदा समय में राजस्थान में 40 विधायक, हरियाणा में 25 विधायक और उत्तर प्रदेश में 17 विधायक जाट समुदाय से आते हैं। हरियाणा में आरक्षण आंदोलन और उसके बाद हुए किसान आंदोलन के चलते जाटों का एक बड़ा तबका, भाजपा से दूरी बनाए हुए है। पार्टी नेताओं को यह विश्वास है कि अगर धनखड़ उपराष्ट्रपति बनते हैं तो जाटों से बनी भाजपा की दूरी पाटने में बड़ी मदद मिल सकती है।
लोकसभा और दो राज्यों के विधानसभा चुनावों पर नजर
जगदीप धनखड़, राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव से आते हैं। किसान आंदोलन में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जाट वोटर, भाजपा से खफा हो गए थे। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में, जिनमें यूपी भी शामिल था, पार्टी उनकी नाराजगी मोल लेने की स्थिति में नहीं थी। यही वजह रही कि गत वर्ष नवंबर में पीएम मोदी को तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने की घोषणा करनी पड़ी। विधानसभा चुनाव में भाजपा को मनचाही सफलता भी मिल गई। अब पार्टी के सामने 2023 में होने राजस्थान विधानसभा चुनाव हैं। साल 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे और उसके कुछ माह बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव होंगे। राजस्थान में 10, हरियाणा में 20 और उत्तरप्रदेश में जाटों की संख्या दो फीसदी बताई जाती है। राजनीतिक जानकारों का कहना है, खासतौर पर हरियाणा में जाट समुदाय अभी तक भाजपा को पूरे मन से स्वीकार नहीं कर पा रहा है।
हरियाणा की राजनीति को गहराई से समझने वाले, वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र कुमार बताते हैं, ये बात सही है कि जाट समुदाय, भाजपा से दूरी बनाए हुए है। हालांकि जजपा, जिसकी जाट समुदाय में खासी पैठ है, भाजपा सरकार में सहयोगी है। दुष्यंत चौटाला, डिप्टी सीएम हैं। 2014 से पहले तक भाजपा को शहरी लोगों की पार्टी कहा जाता था। नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद मनोहर लाल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। 2019 में मनोहर लाल ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भाजपा ने कुछ हद तक जाट वोटरों में सेंध तो लगाई, मगर वह उनके विश्वास को नहीं जीत सकी। जाट समुदाय, जिसे परंपरागत तौर से इंडियन नेशनल लोकदल के साथ माना जाता था, भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उसमें काफी बड़े पैमाने पर सेंध लगाई है। वे दस साल तक सीएम रहे हैं। अब जाट वोटर, इनेलो, जजपा और कांग्रेस में बंटे हैं। भाजपा को लोकसभा चुनाव में जाटों ने पूरा समर्थन दिया था, इसमें कोई शक नहीं है। 2019 में प्रदेश की जनता ने सभी दस सीटें भाजपा की झोली में डाल दी थी। यहां तक कि रोहतक और सोनीपत लोकसभा सीट, जहां से दीपेंद्र हुड्डा व भूपेंद्र हुड्डा को भी हार का मुंह देखना पड़ा।
धनखड़ की उम्मीदवारी से हट सकता है वह ठप्पा
विधानसभा चुनाव में जगदीप धनखड़ फैक्टर काम कर सकता है। हरियाणा के अलावा राजस्थान के जाट वोटर इससे प्रभावित हो सकते हैं। अभी तक भाजपा को गैर जाट समर्थित पार्टी कहा जाता था, अब धनखड़ की उम्मीदवारी से वह ठप्पा हट सकता है। किसान आंदोलन में भाजपा के मंत्रियों, विधायकों और दूसरे पार्टी नेताओं का सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करना मुश्किल हो गया था। हर जगह पर उन्हें किसानों का विरोध झेलना पड़ा। अब पार्टी कह सकती है कि उसने जाट समुदाय के व्यक्ति को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित किया है। राजस्थान में लगभग 38 विधानसभा सीटों पर जाटों का प्रभाव माना जाता है। बाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर, गंगानगर, चुरू, बीकानेर, सीकर, नागौर व हनुमानगढ़ आदि जिलों में जाटों की अच्छी खासी आबादी है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष गोविंद सिंह और आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल, ये तीनों जाट समुदाय से हैं। हरियाणा में भी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, जजपा प्रमुख दुष्यंत चौटाला और इनेलो राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला व उनके पुत्र एवं प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला जाट समुदाय से हैं। भले ही कांग्रेस पार्टी ने गैर जाट समुदाय से आने वाले उदयभान को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है, लेकिन ये बात सभी जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जो कि स्वयं जाट समुदाय से हैं, की बात टालना आसान नहीं है।
कई दलों के नेताओं के लिए हो सकती है मुश्किल
रविंद्र कुमार के मुताबिक, भाजपा ने इसी मकसद से जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है ताकि उसे लोकसभा चुनाव और दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में जाटों का समर्थन हासिल हो जाए। धनखड़ की उम्मीदवारी के बाद राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने कहा था, जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने को लेकर धनखड़ ने उच्च न्यायालय में बड़ी लड़ाई लड़ी है। प्रदेश में जाटों को ओबीसी में शामिल कराने में धनखड़ का काफी योगदान रहा है। भाजपा ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर, जाट समुदाय को सम्मान प्रदान किया है। अगर धनखड़ उपराष्ट्रपति बनते हैं तो हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा, दुष्यंत चौटाला, अभय चौटाला और राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। वजह, इन दोनों राज्यों में भाजपा, यह प्रचार करेगी कि उसने जाट समुदाय के व्यक्ति को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार चुना है। हरियाणा में कांग्रेस पार्टी और भूपेंद्र हुड्डा को इससे बड़ा झटका लगने की संभावना है। धनखड़ फैक्टर से प्रदेश के जाटों का बड़ा वर्ग, भाजपा के साथ आ सकता है।
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